Supreme Court: मुफ्त रेवड़ियों पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती, जाने क्या है पूरा मामला

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Supreme Court ने चुनावों से पहले मुफ्त उपहार (रेवड़ियां) देने की परंपरा पर सवाल उठाते हुए कहा कि इससे लोग काम करने के लिए तैयार नहीं हैं क्योंकि उन्हें मुफ्त राशन और पैसा मिल रहा है। शीर्ष अदालत ने चिंता जताई कि क्या इससे राष्ट्र के विकास में योगदान देने के बजाय एक परजीवी वर्ग तैयार नहीं किया जा रहा? सुप्रीम कोर्ट शहरी बेघरों के आश्रय के अधिकार से जुड़ी याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त सुविधाओं की घोषणाएं चुनावों से ठीक पहले की जाती हैं, जिससे संतुलन बिगड़ रहा है।

Supreme Court ने कहा मुफ्त योजनाओं से प्रभावित हो रही श्रम व्यवस्था

सुनवाई के दौरान, महाराष्ट्र के एक याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि मुफ्त राशन जैसी योजनाओं के कारण कृषि और अन्य क्षेत्रों में मजदूर नहीं मिल रहे हैं। उनका कहना था कि जब हर किसी को घर पर मुफ्त राशन मिल रहा है, तो वे काम करने के लिए बाहर क्यों निकलेंगे? वहीं, कोर्ट में एक वकील ने दलील दी कि गरीबों को सुविधाएं देना जरूरी है, क्योंकि उनके पास आश्रय नहीं है। इस पर Supreme Court ने कहा कि दया सिर्फ अमीरों के लिए नहीं हो सकती, लेकिन इस व्यवस्था को संतुलित किया जाना चाहिए ताकि लोग राष्ट्र निर्माण में योगदान दे सकें।

सरकार ने दिया समाधान का आश्वासन

जानकारी के लिए बता दे कि केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने बताया कि शहरी गरीबी उन्मूलन मिशन के तहत बेघरों के लिए आश्रय की व्यवस्था की जा रही है और इसके लिए पायलट परियोजनाएं शुरू की गई हैं। वहीं, दिल्ली सरकार ने भी हलफनामा दायर कर बताया कि आश्रयों की स्थिति सुधारने के प्रयास किए जा रहे हैं। Supreme Court ने सभी पक्षों से जवाब मांगा और कहा कि मुफ्त योजनाओं का संतुलन बनाकर ही समाज में समावेशी विकास संभव हो सकता है।

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